कहते है सपने कभी अपने नहीं होते लेकिन फिर भी हर इंसान अपने जीवन मे अपनी ख्वाइश पूरी करने की जद्दोजहज मे लगा रहता है लेकिन कभी कभी इंसान के सपने पारिवारिक और सामाजिक रीति रिवाजों के बोझ तले दब जाता है तो कभी कभी इंसान इन कुरुतियों से लड़ते हुये अपने दिली ख्वाइश पूरी कर लेता है चाहे वो इत्तिफ़ाक से हो या उन रीतिरिवाजों के दायरे मे हो लेकिन सच तो ये है की काश ये रीतिरिवाज जात पात धर्म का बंधन ना होता तो शायद इंसान धरती पर सबसे ज्यादा सुखी होता । ऐसे ही सामाजिक भावनाओ से जुड़ी है आज की ये लघु कथा जिसे KnowledgePanel के नियमित Reader Mr. Sourav AnkitChourasia ने भेजा है जो अपने भावनाओं को शब्दों मे पिरो कर पेश किया है, आप इनकी लिखी और भी रचनाओं जैसे कविता,कहानी आदि को इनके Personal Blog - https://blogbyankit.blogspot.com पर पढ़ सकते है –
सपने हुये अपने
कहानी की शुरुआत होती है एक माध्यम वर्गीय परिवार से जहां ठाकुर साहेब अपने धर्मपत्नी और अपनी चार पुत्री और एक पुत्र के साथ बड़े खुशी खुशी ढेर सारे सपने सँजोये अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे और अपनी दवा की दुकान से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे , वक्त के साथ जीवन अपनी दूरी तय कर रही थी और एक वक्त ऐसा आ गया जहां ठाकुर साहेब को अपनी पुत्री भारती की शादी की चिंता सताने लगी और बहुत असरे बाद वो वक्त भी आ गया जब उनकी पुत्री भारती के रिश्ते के लिए लड़के वाले उनके घर आने वाले थे ये खबर बिना किसी देरी के वो अपनी धर्मपत्नी को देना चाहत थे और ठाकुर साहेब अपने दवा की दुकान से सारे काम निपटा के घर आए
"अजी
सुनती हो ठकुराइन !! - कहां हो ?? ज़रा फ्रिज से ठंडा पानी लेती आओ, बड़ी प्यास लगी है और सुनों अपनी भारती के लिए रिश्ता आया
है। लड़का परिवहन विभाग में काम करता है। ज़रा मेरे कमरे में पानी लेकर जल्दी आओ "--- ये कहते हुए ठाकुर साहब भरी
दोपहरीया में पसीना पोंछते हुए अपने कमरे में चले गए (उनकी धर्मपत्नी शिक्षिका
हैं।)
और 2-3 के बाद उनके घर लड़के वाले का आगमन होता है ठाकुर साहेब सारे काम निपटा कर जल्दी घर लौट आए ताकि मेहमानो के खातिरदारी मे कोई कमी ना रह जाए और सच मे मेहमानों की खातिरदारी में ठाकुर साहब ने कोई कसर नहीं छोड़ी। महंगे से महंगे स्वादिष्ट मिठाइयाँ तरह तरह के पकवान परोसे गए। लड़के और उसके परिवार वालों ने भारती को देखा। भारती उन्हें पसंद आ गई।
और 2-3 के बाद उनके घर लड़के वाले का आगमन होता है ठाकुर साहेब सारे काम निपटा कर जल्दी घर लौट आए ताकि मेहमानो के खातिरदारी मे कोई कमी ना रह जाए और सच मे मेहमानों की खातिरदारी में ठाकुर साहब ने कोई कसर नहीं छोड़ी। महंगे से महंगे स्वादिष्ट मिठाइयाँ तरह तरह के पकवान परोसे गए। लड़के और उसके परिवार वालों ने भारती को देखा। भारती उन्हें पसंद आ गई।
इसके बाद दौर शुरू हुआ
लेनदेन की बातों का। चूंकि लड़का सरकारी नौकरी में था तो हर लडकी के पिता की भांति
भारती के पिता भी इस रिश्ते को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। लेकिन लड़के वालों
की मांग सुनकर भारती ने कड़े शब्दों में मना कर दिया था। भारती की मां को भी ये
रिश्ता दहेज के कारण मंजूर न था और आखिर में रिश्ते के लिए ठाकुर साहब ने 'ना' कह दिया।
भारती अपने चार बहनों और एक भाई में मंझली थी। उस लड़के से शादी ना होना शायद भारती के लिए अच्छा ही हुआ क्यूंकि वह आगे पढ़ना चाहती थी और कुछ बनना चाहती थी भारती अत्यन्त सुलझी हुई शांत स्वभाव की लडकी थी । हाई स्कूल पास करने के बाद उसने कॉमर्स में अपनी रुचि जताई और इसी में अपना भविष्य ढूंढने में लग गई। हालांकि उसने स्नातक में कॉमर्स की पढ़ाई के साथ- साथ बैंकिंग और अन्य परीक्षाओं के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश की ताकि कोई नौकरी पा सके और आगे पीएचडी की पढ़ाई और रिसर्च करने में कोई आर्थिक समस्या न हो। बरहाल, पढ़ाई के दौरान उसके कई दोस्त बने जो उसे काफ़ी अजीज होते थे। इसी दौरान हर लड़की के जैसे भारती के भी कुछ ख्वाब पलने लगे मन किसी लड़के पर आ गया ।
इन्ही मे से एक लड़का था ' भारत' , बहुत मैच्योर, पारिवारिक और व्यवहारिक। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम जॉब भी कर रहा था। बातचीत थोड़ी आगे बढ़ी पहले दोस्ती फ़िर प्रेम के आगोश मे डूबते गए , फ़िर घर वाले और समाज, जात पात, उंच नीच का भय दोनों के मन में आने लगा । भारती इस रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले अपने पैरों पर खड़ी हो जाना चाहती थी ताकि उसके परिवार वाले राजी खुशी उन दोनों को अपना लें।
खैर समय अपनी गति से चलता है कुछ दो-तीन सालों के बाद भारती यूजीसी नेट क्वालीफाई करती है और कुछ टाइम बाद उसका सलेक्शन गेस्ट लेक्चरर के तौर पर पास के ही कॉलेज में हो जाता है। इधर भारत भी अपनी पढ़ाई पूरी कर एक अच्छे मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा थ ।
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कुछ महीने बैंगलोर में काम करने के बाद उसे कंपनी विदेश भेजने की तैयारी में थी ,लेकिन विदेश जाने से पहले वो भारती के साथ घर बसा लेना चाहता था लेकिन परिवार वालों से कहने में संकोच भी करता था । लेकिन
आपसी तालमेल के बाद
दोनों एक दिन मुकर्रर करते हैं और अपने परिवार जनों के सामने अपने अपने दिल की बात
रखते हैं। काफी मान मनौवल के बाद भारती के माता पिता भारत और उसके माता पिता से मिलने
को राजी हो जाते हैं। इधर भारत भी अपने माता पिता को जैसे तैसे कर के मना लेता है।
तय दिन में दोनों परिवार वाले मिलते हैं बातों और मुलाकातों के शीलशिला मे आखिरकार
जीत 'भारती और भारत' के प्रेम की होती है और शादी तय हो जाती है।
तय तारीख पर दोनों की शादी हो जाती है। दोनों परिवारों के बीच भी धीरे धीरे तालमेल बैठ जाता है और सभी लोग प्रेम से रहने लगते हैं।
और इस प्रकार ठाकुर साहेब के सपने भी पूरे हो जाते है और भारती अपने मोहब्बत को पाने मे कामयाब भी हो जाती है सपने हकीकत मे बदल तो जाते है।
ये कहानी तो यहीं अपने एक सुखद अंत तक पहुंच गई। लेकिन काश!! ये कहानी वर्तमान मे हर भारती और भारत की होती तो समाज मे फैली इस जात-पात,धर्म,रीतिरिवाज जैसे दूषित बीमारी का निदान हो जाता।
रिश्ते चाहे जैसे भी बने अगर वे प्रेम और संस्कार के प्रांगण मे हो तो उसे कोई रीतिरिवाज और जात पात नहीं रोक सकती ।
Story By - Mr. Sourav Ankit Chourasia
Edited By - Mr. Angesh Upadhyay
Presented By - Knowledge Panel
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