हम सभी के जीवन मे कुछ पल ऐसे आते है जिसे हम ना चाहते हुये भी कभी भूल नहीं सकते वो खास पल परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ जुड़ी रहती है जिसे हम कुछ देर के लिए छुपा तो सकते है लेकिन उसे कभी हटा नहीं सकते ।
ऐसे ही कुछ खास पल की कहानी आज आपके बीच का साझा कर रहा हूँ। ये कहानी भारत के बिहार राज्य के सीमांचल इलाके का खूबसूरत जिला पुर्णिया का है जहां के लॉं कॉलेज मे पढ़ रहे सुमित कुमार के परम मित्र अमित कुमार उसके जीवन के अनोखे और खूबसूरत एहसास को हमारे साथ साझा किया है।
आपसे अनुरोध है की आप इस आर्टिक्ल को पूरा पढे । ये आर्टिक्ल आपके होठों पे मुस्कान और आँखों मे नमी जरूर लेकर आएगी।
ये कहानी सच्ची घटना पर आधारित है सिर्फ इसके पत्रों के नाम व्यक्तिगत कारणो से बदली गई है।
बात उन दिनों की है जब सुमित कई वर्षो के बाद अपने को भविष्य को सवारने के लिए कानून की पढ़ाई करनी चाही और बिना वक्त गवाए उसने अपना दाखिला पुर्णिया के सुप्रसिद्ध विधि महाविद्यालय ,ब्रजमोहन ठाकुर लॉं कॉलेज पुर्णिया मे करवा लिया । कंधे पे दो छोटी बहनों के भविष्य की ज़िम्मेदारी और पिता के अक्सर बीमार रहने के वजह से कम उम्र मे ही वक्त ने जिंदगी से वो अनुभव जोड़ दिया जो सुमित को कम उम्र मे ही एक अनुभवी ,समझदार एवं परिपक्य इंसान बना दिया ।
कुछ कर गुजरने की चाहत और दिल मे ढेर सारे सपने का बोझ लिए लिए निकल पड़ा सुमित अपने घर से अपने मंजिल की ओर.......वर्षों बाद किसी कॉलेज मे क्लास करने की अनुभूति ऐसी मानो किसी ने गर्मी मे कोलड्रिंक पीला दिया हो....वो झोशीले कदम कॉलेज प्रांगण मे कभी कक्षा तो कभी खेल के मैदान के बीच खड़े वो आम के पेड़ की छाया के नीचे रुक जाया करती.....सुमित था तो जूनियर लेकिन उसके अनुभव और परिपक्वता ने सीनियर छात्रों भी उसके सामने जूनियर लगते....हर कॉलेज की तरह यहाँ भी सीनियर छात्र जूनियर की रेगिंग करने से बाज नहीं आते थे और इसमे सुमित को तो महारत हासिल थी.... और इसी दौरान वो दिन भी आ गया जिसने सुमित की जिंदगी बदल दी......
कॉलेज का पहला दिन सुमित अपने सीनियर दोस्तो के साथ कॉलेज के बरामदे पर बैठा है तभी......एक छात्रा की एंट्री होती है और सुमित हाथ के इशारे से उस लड़की से कहता है -............"एयइ लड़की किधर जा रही है,पहले गाना फिर क्लास के अंदर जाना " ओके.....लड़की बिना गवाए गाना गा देती है.......... दिल तो है दिल दिल का एतबार क्या कीजे ..........सुमित हताश ! तुरंत अपने को संभालते हुये...कहाँ -....ये सब क्या दिल विल वाला गाना सुना रही है ,शास्त्रीय संगीत सुनाओ !! .....अब वो शास्त्रीय संगीत कैसे सुनाती ? फिर भी उसने कोशिश की और.... दो तीन बार आ आ आ ....करके रगिंग के छुटकारा पाया।
ये वो पहली लड़की थी जिसने पहली बार सुमित को आश्चर्य मे डाल दिया था और इसका नाम अनुरीमा था जो सुमित के साथ ही उसके क्लास मे पढ़ती थी
किसी तरह कॉलेज का पहला दिन तो बीत गया । अब अगला दिन ................................
दोपहर का वक्त क्लास शुरू होने मे आधे घंटे शेष बचे थे सुमित अपने दोस्तो के साथ बरामदे पे बैठा था,और तभी !.....दुबली पतली गद काठी ,लाल ढीला सा पैजामा पे पीली कुर्ती,कान मे बड़ा सा झुमका,गले मे इयरफोन लटकाए,बालों को समेटते हुये सुमित की तरफ चली आ रही एक लड़की मानो उसको को कच्चा चबा जाएगी.....वो अपने सहपाठियों के साथ सुमित के करीब ऐसे पहुंची जैसे पुलिस ने रेड मारी हो....सुमित और उसके मित्र... आश्चर्य और भयभीत होकर उठ कर खड़े हो जाते है...और वो लड़की कहती है----क्या मज़ाक बना के रखे हो,पूरा कॉलेज के रगिंग का ठेका लेके रखे हो ? समझ क्या रखा है खुद को ? हाँ ? सुमित को ऐसा लगा जैसे किसी ने कान मे जोड़ की सिटी बाजा दी है और दिमाग सन्न सा हो गया हो ...हताश सा सुमित सिर्फ बिना कुछ कहें उसकी बातों को सुन रहा था,वो कुछ सेकंड चुप होती और पुनः अपने होठों से शब्दों के बाण चलती जो सुमित के दिल दिमाग दोनों को चीरती जा रही थी........ - " सहपाठी होकर अपने ही सहपाठी की रेगिंग लेते हो ,अधिक उम्र मे पढ़ाई शुरू किए हो या कई दफा एक ही क्लास मे फ़ेल हुये हो,हाँ ! आइंदा ऐसा हुआ न तो शिकायत सीधा प्रिन्सिपल साहब हो जाएगी समझे ".......फिर वो जिस तरह आई उसी तरह वापस चली गई अपने सहेलियों के काफिले के साथ.....ये लड़की कोई और नहीं उस अनुरीमा की बड़ी बहन निम्मी थी जो इसी शहर पुर्णिया मे रह कर प्रतियोगिता परीक्षाओ की तैयारी करती थी । .......निम्मी के जाने के बाद सुमित खुद को संभालते हुये थोड़ा वर्तमान मे आया....
" निम्मी और अनुरीमा दोनों बहन बिहार के सीवान जिले के रहने वाली थी और पुर्णिया मे एक निजी हॉस्टल मे रह कर पढ़ाई कर रही थी ,निम्मी प्रतियोगता परीक्षा की तैयारी कर रही थी और अनुरीमा लॉं की पढ़ाई कर रही थी। "
इस घटना के अगले दिन अनुरीमा ने निम्मी से सुमित के बारे मे बताया .....की वो कुछ मजबूरीयों के कारण कई वर्षो तक पढ़ाई छोर दी थी ,पिता अक्सर बीमार रहते है घर का बड़ा लड़का होने के कारण अपने से छोटी दो बहनो की ज़िम्मेदारी भी इसके कंधे पे है ,बहन को अच्छे स्कूल मे पढ़ाना और उसे एक अच्छे माहौल देने का प्रयास करता रहता है सुमित,बीते कई सालों से उसने कभी देशहरा-दिवाली मे खुद के लिए कुछ नहीं लिया लेकिन बहनों को उसके पसंद के कपड़े जरूर दिये ,कम वक्त ने इतने सारे जिम्मेदारियों का बोझ लिए वो सबकी मदद बिना किसी स्वार्थ के करता रहता है ,सुमित जो दिखता है असल मे वो ऐसा नहीं .............अनुरीमा सुमित के बारे मे निरंतर कहती जा रही थी और निम्मी उसके बातों को सुन कर अपने किए पर शर्मिंदिगी महसूस कर रही थी निम्मी को अपने किए पर पछतावा था तभी तो अनुरीमा के बातें सुन कर उसके आँखों से आँसू छलक गए लेकिन सुमित के बारे मे अनुरीमा की जुबानी अब भी जारी थी तभी निम्मी ----अब बस कर पगली ! कितना रुलाएगी ? देख कटोरा भर गया जा बाहर फेक कर आ ।
अगले दिन निम्मी सुमित से अपने किए पे माफी मांगने कॉलेज पहुंची,सुमित अपने दोस्तो के साथ कॉलेज केंटीन मे बैठा था,तभी निम्मी उसके सामने आकार खड़ी हो गई ...सुमित चौंकते हुये कहा---त्तूम अब क्या किया मैंने ? ...निम्मी--दे दे देखो सुमित,उस दिन गुस्से मे मैंने बहुत कुछ उल्टा पुल्टा बोल दिया था उसके लिए माफी मँगतीं हूँ !! सुमित ने चाय की प्याली निम्मी की ओर बढ़ाते हुये कहा -- दरअसल उस दिन मैंने कुछ सुना नहीं मेरा सारा ध्यान तुम्हारे कान के एयररिंग पे थी,तुम कब क्या बोल दी मैंने न समझा न सुना ........इस तरह दोनों के बीच बातचीत होने लगी......फिर जाते जाते दोनों के बीच फोन नंबर भी शेयर हुई।......
उसी दिन रात 11 बजे सुमित के फोन मे एक व्हाट्सप्प आता है....Hi.... मैसेज निम्मी का था.....और फिर बातें आगे होती गई और दोनों शब्दों और वाक्यों का आदान प्रदान करने लगे....वक़्त बीतता गया इनकी बाते व्हाट्सप्प से शुरू होकर कब मुलाक़ात मे बदल गई पता नहीं चला....फिर हर रोज ढेर सारी बातें और चंद मुलाकातें का सिलशिला चलता गया.....शायद अब इनकी दोस्ती बहुत गहरी हो चुकी थी की....जिसका अंदाजा शायद इनको नहीं था की वे अब दोस्त नहीं रहे .......
हर रोज निम्मी अपनी कोचिंग क्लास के खत्म होने के बाद पुर्णिया के एक मात्र स्टेडियम मे संध्या 6 बजे पहुँच जाती और सुमित के इंतजार मे स्टेडियम के सीढ़ी पर बैठी रहती,फिर रोज की तरह सुमित का मूँगफली लेकर देरी से आना फिर निम्मी का खूबसूरत गुस्सा फिर दोनों के बीच प्यार भरी तकरार,निम्मी द्वारा कभी ना मिलने की झूठा वादा करना.....इस तरह वक्त बीतता गया कई सारे बदलाव हुये ,बदली नहीं तो इन दोनों की दोस्ती,इनका साथ,मिलने का वो खूबसूरत स्थान......वक्त के साथ इनके रिश्ते की गहराई और भी गहरी होती गई ।
फिर आया वो वक्त जब कॉलेज मे अनुरीमा और सुमित ने पढ़ाई के पूरे पाँच साल पूरे हो गए और कॉलेज प्रसाशन द्वारा इस सेशन के सभी छात्र -छात्राओ के लिए विदाई समारोह आयोजित की गई थी। कॉलेज से विदाई का वो पल कितना कठिन होता है शायद इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है,वक्त ने मानो सबकुछ रोक दिया हो ।खैर सारा खेल वक्त का ही था और वक्त के साथ ही विदाई समारोह का समापन होना था उसके बाद सभी अपने अपने सपनों को पूरा करने गंतव्य स्थान की ओर प्रस्थान हो जाते ......लेकिन सुमित को इस कॉलेज से जो मिला वो शायद इस सेशन के किसी छात्र को नहीं मिला वो था एक सच्चा दोस्त जो दिल के करीब था........
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुरीमा और निम्मी को हमेशा के लिए घर वापस होना था और चूंकि निम्मी घर की बड़ी बेटी थी इसलिए घर वापस जाते ही उसकी शादी हो जाने की भी चर्चा हो रही थी । पाँच वर्ष मे जो प्यार स्नेह यहाँ मिला उसे छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाने का दर्द असहनीय था ।
इसी पीड़ा और दिल मे ढेर सारी बातें लेकर निम्मी उसी स्टेडियम मे शाम 6 बजे सीढ़ी पे बैठे सुमित का इंतजार करने लगी !! उधर सुमित हाथ मे मूँगफली लिए,कुछ चबाते कुछ गिराते ,हालात से अनजान रोज की तरह देरी से पहुंचा और निम्मी के बगल मे मूँगफली रख कर बैठ गया........निम्मी एक एक मूँगफली उठाती उसे फोड़ती ऐसे मानो दिल के दर्द को रोक रही हो...शांत सा माहौल.....निम्मी के खूबसूरत आंखो के कोर मे आँसू की वो बुँदे दिल का हाल बयां कर रही थी......शायद सुमित निम्मी के इस पीड़ा को समझ रहा था इसलिए उसने माहौल को हल्का करने के लिए कहा - .....निम्मी एक काम करना ये सारे मूँगफली तुम लेकर चली जाना और वहाँ आराम अपने कमरे मे बैठकर खाना....
निम्मी गुस्से और दर्द भरे नजरों से सुमित की और देखती है झल्लाते हुये कहती है --- त्तू तू तुम कब किसी बात को गंभीरता से लोगे ! बोलो? घर मे मेरी शादी की बाद चल रही है ! सुमित मैं मैं किसको क्या जवाब दु बताओ ? तुम इस तरह बेपरवाह हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं !!!! बताओ सुमित !!!? मैं क्या करू ?!!!.........और निम्मी के आँखों मे छुपी वो आँसू खुद को रोक नहीं पाये और आंखो से छलकते ही माहौल फिर से शांत और गमगीन सा हो गया मानो अंधकार मे चाँद छुप गया हो । ...........निम्मी खुद को संभालते हुये आँसू को रोकते हुये सुमित के हाथ मे मूँगफली का पकड़ाते झल्लाते हुये कहती है ......- लो ये मूँगफली घर जाकर आराम से खाना ।
इस बीच कब सूर्य ढल गया पता ही नहीं चला अंधेरा धीरे धीरे चाँदनी रात को अपने अगोस मे लेने की कोशिश कर रहा था। .....सुमित अपनी मोटरसाइकिल मे चाभी लगाते हुये बोला -....निम्मी चलो रात होने को आई चलो मई तुम्हें तुम्हारे रूम पे छोड़ दूँ .... निम्मी -----हाँ सुमित मुझे पता है तुम मुझे छोड़ ही दोगे और कर भी क्या सकते हो....निम्मी के आंखो के आँसू अब भी छलकने का इशारा कर रही थी.....और इधर सुमित अब मायूस था अंधेरे ने उसके आँसू को कहीं छुपा दिया नम हुवजह से निम्मी ये आंखो देख न सकी । .........सुमित मोटरसाइकिल स्टार्ट करता है और निम्मी को उसके हॉस्टल छोडने निकल पड़ता है वो दोनों एक दूसरे को बिना कुछ कहे जुदाई और मोहब्बत को एक साथ महसूस कर रहे थे ।
सुमित निम्मी को छोड़ कर वापस अपने घर चला आता है और उसी रात 10 बजे सुमित को निम्मी का व्हाट्सप्प आता है........तुमने क्या सोचा सुमित ?...बताओ ?......सुमित कोई जवाब नहीं देता है......उसके बाद निम्मी का कोई मैसेज नहीं आता ,......सुमित काफी देर तक मोबाइल स्क्रीन पे नजर गड़ाए रखा है लेकिन उसके बाद निम्मी का कोई मैसेज नहीं आया....
दो बहनों की शादी....पिता की ख्याल....आर्थिक परिस्थिति...और सर पर ढेर सारी जिम्मेदारियों के बोझ ने ......सुमित को निम्मी के मैसेज का रिप्लाइ देने से रोक दिया......
और देखते ही देखते कॉलेज के फेयरवेल का दिन आ गया सुमित चाहता था की निम्मी इस समारोह मे ना आए लेकिन दिल से वो पूरे समारोह मे उसे ही खोज रहा था......इस दौरान अनुरीमा सुमित के पास आती है.....सुमित जी !! आज कॉलेज का आखिरी दिन है! शायद !! आज के बाद कभी मुलाक़ात नहीं होगी इसलिए आखिरी बार आप चाहो तो स्टेशन मिलने आ सकते हो ! आज शाम 5 बजे की ट्रेन है चलती हूँ अपना ख्याल रखना ।
निम्मी और अनुरीमा अपने समान के साथ प्लैटफ़ार्म नंबर एक पर पहुँच जाती है .......मन को रोके दिल मे मिलने का ख्याल लिए सुमित कॉलेज से निलकने के बाद स्टेशन के एक फ्लाईओवर पे निम्मी के नजरों से दूर खड़ा हो जाता है,जहां से सुमित निम्मी को देख पा रहा था .......उधर निम्मी की नजरें स्टेशन के हर तरफ सुमित को ढूंढ रही थी ........तभी ट्रेन आती है उतरने और चढ़ने वाले यात्रियों का काफिला प्लेटफॉर्म को अपने आगोस मे ले लेती है लेकिन सुमित की नजरें अब भी इस भीड़ मे निम्मी को ही देख रही थी जो किसी तरह मसक्कत के साथ ट्रेन के डिब्बे मे चढ़ने कर प्रयास कर रही है ....बड़े फुर्ती के साथ अनुरीमा भीड़ को कमजोर करते हुये ट्रेन पे चढ़ जाती है और बारी बारी से निम्मी उसे सामान देती है ......लेकिन निम्मी की नजरें अब भी सुमित को ढूंढ रही थी ,सभी सामानों को चढ़ाने के बाद खुद भी ट्रेन पर चढ़ जाती है और चढ़ने से पहले एक बार पूरे स्टेशन के हर तरफ नजर दौड़ती है की कहीं दिख जाए उसका सुमित....उसे लगा शायद देर से आने की आदत जो थी उसे....लेकिन शायद बहुत देर हो चूंकि थी..निम्मी की मोहब्बत अब यादों मे तबदील हो चुकी थी ट्रेन धीरे धीरे स्टेशन को छोडते हुये निकलती जा रही थी लेकिन निम्मी की आँखें अब भी सिर्फ और सिर्फ सुमित के एक झलक मात्र को तरस रही थी.....ट्रेन फ्लाईओवर के नीचे से गुजरता है......सुमित अब भी उसी फ्लाईओवर पे खड़ा उस जाती ट्रेन को निहार रहा था ......और तभी जो हुआ सायद वो मोहब्बत का वो खूबसूरत एहसास था.......फ्लाईओवर से नीचे उतरने के दौरान निम्मी ने सुमित का एक झलक देख लिया और बिना वक्त गवाए उसके आवाज लगा दी...........सु सु सु सूमित !....सुमित पीछे देखा तो उसकी भी सीधि नजर निम्मी पे पड़ी जो हाथ हिला कर उसे इशारा कर रही थी मानो अपने मोहब्बत का इजहार कर रही हो .......सुमित के आंखो मे छुपी वो आँसू पहली बार उसके आँखों से छलक पड़ी .....और वो खुद को संभालते हुये स्टेशन से बाहर आ गया और मूँगफली लिए सीधा स्टेडियम की चले गया शायद वो भूल गया था की आज मूँगफली वो वापस अपने घर ले जाएगा क्यूंकि आज निम्मी उसे साथ नहीं थी .........वक्त वही शाम के ठीक 6 बजे जब वो हर रोज निम्मी से मिला करता था......अब न निम्मी रही न उसकी वो प्यार भरी बातें.....है तो सिर्फ उसकी यादें.......जिंदगी फिर उसी जिम्मेदारियों के बोझ तले चलने लगी .......वक्त ने निम्मी के मोहब्बत को यादों के इतिहास मे बदल दिया और सुमित उन यादों को हमेशा के लिए अपने दिल मे दबा दिया और जीने की ख्वाइस लिए जीने लगा.......शायद इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है जिंदगी कितनी भी दर्दनाक क्यूँ ना हो जीना पड़ता है ....................................आज सुमित अपने दोनों बहनों की धूमधाम से शादी कारवाई और पिता का इलाज भी और कही कही नहीं वो अपने दिल मे निम्मी की यादों को भी दफन कर दिया जो अक्सर उसके आँखों मे दिखती है । ............
धन्यवाद
Written By - Angesh Upadhyay
Presented By - Knowledge Panel
Story by - Amit Kumar
ऐसे ही कुछ खास पल की कहानी आज आपके बीच का साझा कर रहा हूँ। ये कहानी भारत के बिहार राज्य के सीमांचल इलाके का खूबसूरत जिला पुर्णिया का है जहां के लॉं कॉलेज मे पढ़ रहे सुमित कुमार के परम मित्र अमित कुमार उसके जीवन के अनोखे और खूबसूरत एहसास को हमारे साथ साझा किया है।
वक्त .......मोहब्बत.......और तनहाई
आपसे अनुरोध है की आप इस आर्टिक्ल को पूरा पढे । ये आर्टिक्ल आपके होठों पे मुस्कान और आँखों मे नमी जरूर लेकर आएगी।
ये कहानी सच्ची घटना पर आधारित है सिर्फ इसके पत्रों के नाम व्यक्तिगत कारणो से बदली गई है।
बात उन दिनों की है जब सुमित कई वर्षो के बाद अपने को भविष्य को सवारने के लिए कानून की पढ़ाई करनी चाही और बिना वक्त गवाए उसने अपना दाखिला पुर्णिया के सुप्रसिद्ध विधि महाविद्यालय ,ब्रजमोहन ठाकुर लॉं कॉलेज पुर्णिया मे करवा लिया । कंधे पे दो छोटी बहनों के भविष्य की ज़िम्मेदारी और पिता के अक्सर बीमार रहने के वजह से कम उम्र मे ही वक्त ने जिंदगी से वो अनुभव जोड़ दिया जो सुमित को कम उम्र मे ही एक अनुभवी ,समझदार एवं परिपक्य इंसान बना दिया ।
कुछ कर गुजरने की चाहत और दिल मे ढेर सारे सपने का बोझ लिए लिए निकल पड़ा सुमित अपने घर से अपने मंजिल की ओर.......वर्षों बाद किसी कॉलेज मे क्लास करने की अनुभूति ऐसी मानो किसी ने गर्मी मे कोलड्रिंक पीला दिया हो....वो झोशीले कदम कॉलेज प्रांगण मे कभी कक्षा तो कभी खेल के मैदान के बीच खड़े वो आम के पेड़ की छाया के नीचे रुक जाया करती.....सुमित था तो जूनियर लेकिन उसके अनुभव और परिपक्वता ने सीनियर छात्रों भी उसके सामने जूनियर लगते....हर कॉलेज की तरह यहाँ भी सीनियर छात्र जूनियर की रेगिंग करने से बाज नहीं आते थे और इसमे सुमित को तो महारत हासिल थी.... और इसी दौरान वो दिन भी आ गया जिसने सुमित की जिंदगी बदल दी......
कॉलेज का पहला दिन सुमित अपने सीनियर दोस्तो के साथ कॉलेज के बरामदे पर बैठा है तभी......एक छात्रा की एंट्री होती है और सुमित हाथ के इशारे से उस लड़की से कहता है -............"एयइ लड़की किधर जा रही है,पहले गाना फिर क्लास के अंदर जाना " ओके.....लड़की बिना गवाए गाना गा देती है.......... दिल तो है दिल दिल का एतबार क्या कीजे ..........सुमित हताश ! तुरंत अपने को संभालते हुये...कहाँ -....ये सब क्या दिल विल वाला गाना सुना रही है ,शास्त्रीय संगीत सुनाओ !! .....अब वो शास्त्रीय संगीत कैसे सुनाती ? फिर भी उसने कोशिश की और.... दो तीन बार आ आ आ ....करके रगिंग के छुटकारा पाया।
ये वो पहली लड़की थी जिसने पहली बार सुमित को आश्चर्य मे डाल दिया था और इसका नाम अनुरीमा था जो सुमित के साथ ही उसके क्लास मे पढ़ती थी
किसी तरह कॉलेज का पहला दिन तो बीत गया । अब अगला दिन ................................
दोपहर का वक्त क्लास शुरू होने मे आधे घंटे शेष बचे थे सुमित अपने दोस्तो के साथ बरामदे पे बैठा था,और तभी !.....दुबली पतली गद काठी ,लाल ढीला सा पैजामा पे पीली कुर्ती,कान मे बड़ा सा झुमका,गले मे इयरफोन लटकाए,बालों को समेटते हुये सुमित की तरफ चली आ रही एक लड़की मानो उसको को कच्चा चबा जाएगी.....वो अपने सहपाठियों के साथ सुमित के करीब ऐसे पहुंची जैसे पुलिस ने रेड मारी हो....सुमित और उसके मित्र... आश्चर्य और भयभीत होकर उठ कर खड़े हो जाते है...और वो लड़की कहती है----क्या मज़ाक बना के रखे हो,पूरा कॉलेज के रगिंग का ठेका लेके रखे हो ? समझ क्या रखा है खुद को ? हाँ ? सुमित को ऐसा लगा जैसे किसी ने कान मे जोड़ की सिटी बाजा दी है और दिमाग सन्न सा हो गया हो ...हताश सा सुमित सिर्फ बिना कुछ कहें उसकी बातों को सुन रहा था,वो कुछ सेकंड चुप होती और पुनः अपने होठों से शब्दों के बाण चलती जो सुमित के दिल दिमाग दोनों को चीरती जा रही थी........ - " सहपाठी होकर अपने ही सहपाठी की रेगिंग लेते हो ,अधिक उम्र मे पढ़ाई शुरू किए हो या कई दफा एक ही क्लास मे फ़ेल हुये हो,हाँ ! आइंदा ऐसा हुआ न तो शिकायत सीधा प्रिन्सिपल साहब हो जाएगी समझे ".......फिर वो जिस तरह आई उसी तरह वापस चली गई अपने सहेलियों के काफिले के साथ.....ये लड़की कोई और नहीं उस अनुरीमा की बड़ी बहन निम्मी थी जो इसी शहर पुर्णिया मे रह कर प्रतियोगिता परीक्षाओ की तैयारी करती थी । .......निम्मी के जाने के बाद सुमित खुद को संभालते हुये थोड़ा वर्तमान मे आया....
" निम्मी और अनुरीमा दोनों बहन बिहार के सीवान जिले के रहने वाली थी और पुर्णिया मे एक निजी हॉस्टल मे रह कर पढ़ाई कर रही थी ,निम्मी प्रतियोगता परीक्षा की तैयारी कर रही थी और अनुरीमा लॉं की पढ़ाई कर रही थी। "
इस घटना के अगले दिन अनुरीमा ने निम्मी से सुमित के बारे मे बताया .....की वो कुछ मजबूरीयों के कारण कई वर्षो तक पढ़ाई छोर दी थी ,पिता अक्सर बीमार रहते है घर का बड़ा लड़का होने के कारण अपने से छोटी दो बहनो की ज़िम्मेदारी भी इसके कंधे पे है ,बहन को अच्छे स्कूल मे पढ़ाना और उसे एक अच्छे माहौल देने का प्रयास करता रहता है सुमित,बीते कई सालों से उसने कभी देशहरा-दिवाली मे खुद के लिए कुछ नहीं लिया लेकिन बहनों को उसके पसंद के कपड़े जरूर दिये ,कम वक्त ने इतने सारे जिम्मेदारियों का बोझ लिए वो सबकी मदद बिना किसी स्वार्थ के करता रहता है ,सुमित जो दिखता है असल मे वो ऐसा नहीं .............अनुरीमा सुमित के बारे मे निरंतर कहती जा रही थी और निम्मी उसके बातों को सुन कर अपने किए पर शर्मिंदिगी महसूस कर रही थी निम्मी को अपने किए पर पछतावा था तभी तो अनुरीमा के बातें सुन कर उसके आँखों से आँसू छलक गए लेकिन सुमित के बारे मे अनुरीमा की जुबानी अब भी जारी थी तभी निम्मी ----अब बस कर पगली ! कितना रुलाएगी ? देख कटोरा भर गया जा बाहर फेक कर आ ।
अगले दिन निम्मी सुमित से अपने किए पे माफी मांगने कॉलेज पहुंची,सुमित अपने दोस्तो के साथ कॉलेज केंटीन मे बैठा था,तभी निम्मी उसके सामने आकार खड़ी हो गई ...सुमित चौंकते हुये कहा---त्तूम अब क्या किया मैंने ? ...निम्मी--दे दे देखो सुमित,उस दिन गुस्से मे मैंने बहुत कुछ उल्टा पुल्टा बोल दिया था उसके लिए माफी मँगतीं हूँ !! सुमित ने चाय की प्याली निम्मी की ओर बढ़ाते हुये कहा -- दरअसल उस दिन मैंने कुछ सुना नहीं मेरा सारा ध्यान तुम्हारे कान के एयररिंग पे थी,तुम कब क्या बोल दी मैंने न समझा न सुना ........इस तरह दोनों के बीच बातचीत होने लगी......फिर जाते जाते दोनों के बीच फोन नंबर भी शेयर हुई।......
उसी दिन रात 11 बजे सुमित के फोन मे एक व्हाट्सप्प आता है....Hi.... मैसेज निम्मी का था.....और फिर बातें आगे होती गई और दोनों शब्दों और वाक्यों का आदान प्रदान करने लगे....वक़्त बीतता गया इनकी बाते व्हाट्सप्प से शुरू होकर कब मुलाक़ात मे बदल गई पता नहीं चला....फिर हर रोज ढेर सारी बातें और चंद मुलाकातें का सिलशिला चलता गया.....शायद अब इनकी दोस्ती बहुत गहरी हो चुकी थी की....जिसका अंदाजा शायद इनको नहीं था की वे अब दोस्त नहीं रहे .......
हर रोज निम्मी अपनी कोचिंग क्लास के खत्म होने के बाद पुर्णिया के एक मात्र स्टेडियम मे संध्या 6 बजे पहुँच जाती और सुमित के इंतजार मे स्टेडियम के सीढ़ी पर बैठी रहती,फिर रोज की तरह सुमित का मूँगफली लेकर देरी से आना फिर निम्मी का खूबसूरत गुस्सा फिर दोनों के बीच प्यार भरी तकरार,निम्मी द्वारा कभी ना मिलने की झूठा वादा करना.....इस तरह वक्त बीतता गया कई सारे बदलाव हुये ,बदली नहीं तो इन दोनों की दोस्ती,इनका साथ,मिलने का वो खूबसूरत स्थान......वक्त के साथ इनके रिश्ते की गहराई और भी गहरी होती गई ।
फिर आया वो वक्त जब कॉलेज मे अनुरीमा और सुमित ने पढ़ाई के पूरे पाँच साल पूरे हो गए और कॉलेज प्रसाशन द्वारा इस सेशन के सभी छात्र -छात्राओ के लिए विदाई समारोह आयोजित की गई थी। कॉलेज से विदाई का वो पल कितना कठिन होता है शायद इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है,वक्त ने मानो सबकुछ रोक दिया हो ।खैर सारा खेल वक्त का ही था और वक्त के साथ ही विदाई समारोह का समापन होना था उसके बाद सभी अपने अपने सपनों को पूरा करने गंतव्य स्थान की ओर प्रस्थान हो जाते ......लेकिन सुमित को इस कॉलेज से जो मिला वो शायद इस सेशन के किसी छात्र को नहीं मिला वो था एक सच्चा दोस्त जो दिल के करीब था........
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुरीमा और निम्मी को हमेशा के लिए घर वापस होना था और चूंकि निम्मी घर की बड़ी बेटी थी इसलिए घर वापस जाते ही उसकी शादी हो जाने की भी चर्चा हो रही थी । पाँच वर्ष मे जो प्यार स्नेह यहाँ मिला उसे छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाने का दर्द असहनीय था ।
इसी पीड़ा और दिल मे ढेर सारी बातें लेकर निम्मी उसी स्टेडियम मे शाम 6 बजे सीढ़ी पे बैठे सुमित का इंतजार करने लगी !! उधर सुमित हाथ मे मूँगफली लिए,कुछ चबाते कुछ गिराते ,हालात से अनजान रोज की तरह देरी से पहुंचा और निम्मी के बगल मे मूँगफली रख कर बैठ गया........निम्मी एक एक मूँगफली उठाती उसे फोड़ती ऐसे मानो दिल के दर्द को रोक रही हो...शांत सा माहौल.....निम्मी के खूबसूरत आंखो के कोर मे आँसू की वो बुँदे दिल का हाल बयां कर रही थी......शायद सुमित निम्मी के इस पीड़ा को समझ रहा था इसलिए उसने माहौल को हल्का करने के लिए कहा - .....निम्मी एक काम करना ये सारे मूँगफली तुम लेकर चली जाना और वहाँ आराम अपने कमरे मे बैठकर खाना....
निम्मी गुस्से और दर्द भरे नजरों से सुमित की और देखती है झल्लाते हुये कहती है --- त्तू तू तुम कब किसी बात को गंभीरता से लोगे ! बोलो? घर मे मेरी शादी की बाद चल रही है ! सुमित मैं मैं किसको क्या जवाब दु बताओ ? तुम इस तरह बेपरवाह हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं !!!! बताओ सुमित !!!? मैं क्या करू ?!!!.........और निम्मी के आँखों मे छुपी वो आँसू खुद को रोक नहीं पाये और आंखो से छलकते ही माहौल फिर से शांत और गमगीन सा हो गया मानो अंधकार मे चाँद छुप गया हो । ...........निम्मी खुद को संभालते हुये आँसू को रोकते हुये सुमित के हाथ मे मूँगफली का पकड़ाते झल्लाते हुये कहती है ......- लो ये मूँगफली घर जाकर आराम से खाना ।
इस बीच कब सूर्य ढल गया पता ही नहीं चला अंधेरा धीरे धीरे चाँदनी रात को अपने अगोस मे लेने की कोशिश कर रहा था। .....सुमित अपनी मोटरसाइकिल मे चाभी लगाते हुये बोला -....निम्मी चलो रात होने को आई चलो मई तुम्हें तुम्हारे रूम पे छोड़ दूँ .... निम्मी -----हाँ सुमित मुझे पता है तुम मुझे छोड़ ही दोगे और कर भी क्या सकते हो....निम्मी के आंखो के आँसू अब भी छलकने का इशारा कर रही थी.....और इधर सुमित अब मायूस था अंधेरे ने उसके आँसू को कहीं छुपा दिया नम हुवजह से निम्मी ये आंखो देख न सकी । .........सुमित मोटरसाइकिल स्टार्ट करता है और निम्मी को उसके हॉस्टल छोडने निकल पड़ता है वो दोनों एक दूसरे को बिना कुछ कहे जुदाई और मोहब्बत को एक साथ महसूस कर रहे थे ।
सुमित निम्मी को छोड़ कर वापस अपने घर चला आता है और उसी रात 10 बजे सुमित को निम्मी का व्हाट्सप्प आता है........तुमने क्या सोचा सुमित ?...बताओ ?......सुमित कोई जवाब नहीं देता है......उसके बाद निम्मी का कोई मैसेज नहीं आता ,......सुमित काफी देर तक मोबाइल स्क्रीन पे नजर गड़ाए रखा है लेकिन उसके बाद निम्मी का कोई मैसेज नहीं आया....
दो बहनों की शादी....पिता की ख्याल....आर्थिक परिस्थिति...और सर पर ढेर सारी जिम्मेदारियों के बोझ ने ......सुमित को निम्मी के मैसेज का रिप्लाइ देने से रोक दिया......
और देखते ही देखते कॉलेज के फेयरवेल का दिन आ गया सुमित चाहता था की निम्मी इस समारोह मे ना आए लेकिन दिल से वो पूरे समारोह मे उसे ही खोज रहा था......इस दौरान अनुरीमा सुमित के पास आती है.....सुमित जी !! आज कॉलेज का आखिरी दिन है! शायद !! आज के बाद कभी मुलाक़ात नहीं होगी इसलिए आखिरी बार आप चाहो तो स्टेशन मिलने आ सकते हो ! आज शाम 5 बजे की ट्रेन है चलती हूँ अपना ख्याल रखना ।
निम्मी और अनुरीमा अपने समान के साथ प्लैटफ़ार्म नंबर एक पर पहुँच जाती है .......मन को रोके दिल मे मिलने का ख्याल लिए सुमित कॉलेज से निलकने के बाद स्टेशन के एक फ्लाईओवर पे निम्मी के नजरों से दूर खड़ा हो जाता है,जहां से सुमित निम्मी को देख पा रहा था .......उधर निम्मी की नजरें स्टेशन के हर तरफ सुमित को ढूंढ रही थी ........तभी ट्रेन आती है उतरने और चढ़ने वाले यात्रियों का काफिला प्लेटफॉर्म को अपने आगोस मे ले लेती है लेकिन सुमित की नजरें अब भी इस भीड़ मे निम्मी को ही देख रही थी जो किसी तरह मसक्कत के साथ ट्रेन के डिब्बे मे चढ़ने कर प्रयास कर रही है ....बड़े फुर्ती के साथ अनुरीमा भीड़ को कमजोर करते हुये ट्रेन पे चढ़ जाती है और बारी बारी से निम्मी उसे सामान देती है ......लेकिन निम्मी की नजरें अब भी सुमित को ढूंढ रही थी ,सभी सामानों को चढ़ाने के बाद खुद भी ट्रेन पर चढ़ जाती है और चढ़ने से पहले एक बार पूरे स्टेशन के हर तरफ नजर दौड़ती है की कहीं दिख जाए उसका सुमित....उसे लगा शायद देर से आने की आदत जो थी उसे....लेकिन शायद बहुत देर हो चूंकि थी..निम्मी की मोहब्बत अब यादों मे तबदील हो चुकी थी ट्रेन धीरे धीरे स्टेशन को छोडते हुये निकलती जा रही थी लेकिन निम्मी की आँखें अब भी सिर्फ और सिर्फ सुमित के एक झलक मात्र को तरस रही थी.....ट्रेन फ्लाईओवर के नीचे से गुजरता है......सुमित अब भी उसी फ्लाईओवर पे खड़ा उस जाती ट्रेन को निहार रहा था ......और तभी जो हुआ सायद वो मोहब्बत का वो खूबसूरत एहसास था.......फ्लाईओवर से नीचे उतरने के दौरान निम्मी ने सुमित का एक झलक देख लिया और बिना वक्त गवाए उसके आवाज लगा दी...........सु सु सु सूमित !....सुमित पीछे देखा तो उसकी भी सीधि नजर निम्मी पे पड़ी जो हाथ हिला कर उसे इशारा कर रही थी मानो अपने मोहब्बत का इजहार कर रही हो .......सुमित के आंखो मे छुपी वो आँसू पहली बार उसके आँखों से छलक पड़ी .....और वो खुद को संभालते हुये स्टेशन से बाहर आ गया और मूँगफली लिए सीधा स्टेडियम की चले गया शायद वो भूल गया था की आज मूँगफली वो वापस अपने घर ले जाएगा क्यूंकि आज निम्मी उसे साथ नहीं थी .........वक्त वही शाम के ठीक 6 बजे जब वो हर रोज निम्मी से मिला करता था......अब न निम्मी रही न उसकी वो प्यार भरी बातें.....है तो सिर्फ उसकी यादें.......जिंदगी फिर उसी जिम्मेदारियों के बोझ तले चलने लगी .......वक्त ने निम्मी के मोहब्बत को यादों के इतिहास मे बदल दिया और सुमित उन यादों को हमेशा के लिए अपने दिल मे दबा दिया और जीने की ख्वाइस लिए जीने लगा.......शायद इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है जिंदगी कितनी भी दर्दनाक क्यूँ ना हो जीना पड़ता है ....................................आज सुमित अपने दोनों बहनों की धूमधाम से शादी कारवाई और पिता का इलाज भी और कही कही नहीं वो अपने दिल मे निम्मी की यादों को भी दफन कर दिया जो अक्सर उसके आँखों मे दिखती है । ............
धन्यवाद
Written By - Angesh Upadhyay
Presented By - Knowledge Panel
Story by - Amit Kumar
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Aapko novel likhna chahiye bhaiya
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